लोकपर्व नंदा लोकजात का आगाज
नंदा देवी राजजात _22 सितंबर को वेदिनी पहुंचेगा नंदा का डोला, नंदामय हुआ हिमालयी क्षेत्र , 9 सितंबर को कुरुड़ से चली यात्रा का गांवों में भव्य स्वागत"
- सभार रिपोर्ट _अर्जुन बिष्ट
देहरादून,16 सितंबर
उत्तराखंड के सबसे बड़े लोकपर्व नंदा लोकजात का आगाज चमोली के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में हो गया है। यात्रा पड़ाव दर पड़ाव अपने लक्ष्य विश्व प्रसिद्ध वेदिनी बुग्याल की ओर अग्रसर है तो वेदिनी बुग्याल भी मां नंदा के इस्तकबाल के लिए पलक पांवड़े बिछा कर तैयार है। हरी घास की मखमली चादर ओढ़े मीलों तक फैले बुग्याल के सौंन्दर्य को वहां खिले फूल परिलोक की तरह सजाये बैठे हैं।
नंदा देवी की तलहटी में स्थित वेदिनी बुग्याल समुद्र तल से 11,004 फीट की ऊंचाई पर करीब पांच किलोमीटर तक फैला है। अपनी जैव विविधता के कारण यह बुग्याल पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। कुदरत ने हजारों प्रकार के फूलों से इस बुग्याल को जो नेमत बख्शी है वह इसको अन्य बुग्यालों से अगल पहचान दिलाता है। विश्व प्रसिद्ध रूपकुंड मार्ग पर होने के कारण यह बुग्याल पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।
वैसे तो देश—विदेश के सैलानी यहां प्रतिवर्ष आते रहते हैं, लेकिन भादो के महीने नंदा अष्टमी का पर्व इस बुग्याल के लिए खासा महत्व रखता है। 12 वर्ष बाद होने वाले नंदा राजजात के पर्व को कौन नहीं जानता। यह उत्तराखंड का ऐसा सबसे बड़ा धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन है जो उत्तराखंड के लोक का एक महापर्व है।
मां नंदा भगवती का यह पर्व हर वर्ष लोकजात के रूप में आयोजित होता है, लेकिन यही लोकजात 12वें वर्ष में कांसुवा के राजपरिवार के प्रतिनिधियों के शिरकत करने से राजजात बन जाती है।
कुरुड़ से चलने वाला हिमालयी क्षेत्र की आराध्य देवी मां नंदा भगवती का डोला गत 9 सितंबर को कुरुड़ से पूरी वैदिक परंपराओं के साथ हिमालय की ओर चल पड़ा है। नंदानगर (घाट) विकास खंड से यात्रा अपने निर्धारित पड़ावों से होते हुए वेदिनी बुग्याल की ओर चल पड़ी है।
यात्रा मार्ग पर चेपड़ों, बेराधार, फल्दियागांव, ल्वाणी, मुंदोली, लोहाजंग, वाण (यात्रा मार्ग का आखिरी गांव) में नंदा भक्त पलक पांवड़े बिछाकर माता के स्वागत के लिए तैयार हैं। 22 सितंबर को वेदिनी बुग्याल में पूजा अर्चना के साथ ही नंदा की लोकजात का समापन हो जाएगा।
लोकजात के रास्ते में पड़ने वाले गांवों में ही नहीं आसपास के गांवों में भी सेलपाती व आठवाड़ (भगवती की सबसे बड़ी पूजा) के आयोजन रखे गये हैं। जहां ग्रामीणों में लोकजात को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है वहीं प्रकृति की गोद में बसा वेदिनी बुग्याल मां नंदा के व लोकजात में आने वाले भक्तों के स्वागत के लिए ऐसे सजा है मानो बेसब्री से इंतजार कर रहा है। वेदिनी व समीप स्थित आली बुग्याल में ब्रह्मकमल, डोलइरचा, पोडोफाइलम, कौल्या, जिरेनियम, जिथूम, विल्यूपापी, फैन कमल, रोडोडेनडोन, एन्थोरी, रोडोकम्पानुलेरम, एनीमोन, एस्टर, डाल्फोनियम जैसे अनगिनत प्रजाति के दुलर्भ व औषधीय फूल खिले हैं।
वेदिनी की प्राकृतिक सजावट को देखकर सहसा यह विश्वास भी बलवती हो जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने वेदों की रचना इसी सुंदर स्थान पर की थी। इसी से इसका नाम वेदिनी पड़ा। वेदिनी से लौटे सेवानिवृत्त डिप्टी रेंजर त्रिलोक सिंह बिष्ट बताते हैं कि वेदिनी की सुंदरता और वहां उगे फूलों का वर्णन शब्दों में करना मुश्किल है, उसे तो बस देखकर ही महसूस किया जा सकता है।
(रिपोर्ट आभार _अर्जुन सिंह बिष्ट वरिष्ठ पत्रकार)