जनता परेशान आखिर कौन है जाम का जिम्मेदार
पर्यटक ना पधारे ऋषिकेश घंटों का जाम और बढ़ती भीड़ रुला रही है आम जनता और पर्यटकों को, व्यापार हो गया है ठप्प , यात्रा चरम पर बाजारों में सन्नाटा, मुख्य मार्गों से लेकर गलियों तक में दिल्ली और हरियाणा की दौड़ती गाड़ियां, आखिर कौन है जिम्मेदार
रिपोर्ट_ कृष्णा रावत डोभाल
ऋषिकेश , जिस ऋषिकेश को देखने के लिए सात समंदर पार से बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक यहां डेरा डाल के रहते थे और यहां की शांति का अनुभव अपनी लाइफस्टाइल से हटकर करते थे ,उस पर दिल्ली एनसीआर और हरियाणा का ऐसा ग्रहण लगा है कि अब विदेशी पर्यटक यहां पर पैर रखने से भी डर रहा है, इन बीते चंद सालों में ऐसा क्यों हुआ इस पर गौर करना बहुत जरूरी है , ऋषिकेश के सीमा पर पैर रखते ही पर्यटकों के हाथ पैर फूलने लगते हैं जगह-जगह गाड़ियों की लंबी कतार ,स्थानीय लोग जाम के डर से घरों में दुबके रहते हैं या गलियों का सहारा लेते हैं लेकिन अब गलियां भी स्थानीय लोगों के चलने लायक नहीं रही है इसे प्रशासन का निकम्मापन कहे या हद से ज्यादा बेशर्म हो गए जनप्रतिनिधियों को रोये ? इसका फैसला आपको ही करना है
श्यामपुर जैसा ग्रामीण क्षेत्र इतने सालों से रेलवे फाटक के चलते हैं घंटों के जाम से हलकान है लेकिन जिम्मेदार माननीय को अपनी जिम्मेदारी का एहसास भी नहीं होता है, बात करेंगे कोयल घाटी से चंद्रभागा पुल तक की जिस पर हाई कोर्ट कई बार आदेश कर चुका है अवैध अतिक्रमण हटाने का लेकिन मजाल है कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी का कोई भी आदमी इस क्षेत्र में अपने कार्य को अंजाम दे सके , अब तो स्थानीय व्यापारी भी परेशान हो गया , कहने को मुख्य सड़कों पर जाम ही जाम है लेकिन व्यापार पूरी तरह चौपट है मुख्य मेन बाजार सुनसान पड़ा हुआ है अब यह सोचने वाली बात है कि ऐसा क्यों हो रहा है जी हां ऐसा इसलिए हो रहा है कि आपके जनप्रतिनिधि आपके शहर को आबाद होने में सहयोग नहीं कर रहे हैं , शहर आज भी 25 साल पुरानी ढर्रे पर चल रहा है, जब पर्यटकों के लिए हर जगह जाम है तो ऐसे में वो उतर कर व्यापारियों से कैसे खरीदारी करें , शहर में ना कोई पार्किंग है और ना ही दुकानों के आगे वाहन को खड़ा करने के लिए जगह क्योंकि दुकान तो व्यापारियों ने सड़क पर ही लगा दी है , जब पैदल चलने वाला इंसान भी पैदल नहीं चल पा रहा है तो गाड़ी वाला कैसे सामान लेने के लिए रुक सकता है वह तो दिल्ली से निकलता है और सीधे अपने बुकिंग करे हुए होटल या रिसोर्ट में पहुंचकर अपना विकेंड मनाता है , ऐसे में आम व्यापारी सिर्फ उम्मीद भरी नजरों से आने जाने वालों को देखता रहता है जरा गौर से सोचिए अगर कोयल ग्रांट से चंद्रभागा पुल तक फोरलेन सड़क व्यापारियों और जनप्रतिनिधियों ने बनने दी होती तो शायद ऐसी स्थिति नहीं आती । ऋषिकेश में भी व्यापारियों को व्यापार करने का मौका मिलता और यहां के बाजार भी गुलजार होते ,लेकिन सब कुछ हमने अपने हाथों से बिगाड़ रखा है, पुलिस प्रशासन 42 डिग्री के तापमान पर कैसे इस अनऑर्गेनाइज ट्रैफिक को कंट्रोल करता है वह भी कम स्टाफ के चलते यह तारीफ ए काबिल बात है। लेकिन जो शहर की दशा और दिशा सुधार सकते हैं वह अपनी जिम्मेदारी से क्यों मुंह मोड़े हुए हैं क्या चंद वोटों की खातिर ?
सच्चाई यह है कि जब तक सेंटर में मोदी सरकार है तब तक उत्तराखंड में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है बस कमी है तो यहां की सरकार की उनकी प्लानिंग की , जो कभी भी परवान नहीं चढ़ी ,केंद्रीय योजनाओं को छोड़कर राज्य की योजना का हाल आप सब अच्छी तरह जानते हैं , यूपी को देख कर भी ड्रामे के लिए ही सही अतिक्रमण पर चोट करने के लिए उत्तराखंड का बुलडोजर अभी तक सड़कों पर नहीं उतर रहा है चाहे देहरादून हो चाहे ऋषिकेश हो चाहे हरिद्वार हो या मसूरी नैनीताल हो हर पर्यटक स्थल पर पर्यटक पहुंचकर शासन प्रशासन और सरकार को कोसता हुआ नजर आता है । ऐसे में सवाल उठता है कि किस अधिकार से पर्यटकों को उत्तराखंड आमंत्रित किया जाता है बड़े-बड़े स्लोगन और साइन बोर्डोंऔर विज्ञापन के जरिए , जरा सोचिएगा जरूर । आपका शहर आपके हाथ से फिसल रहा है और यह कब काबू से बाहर चला जाएगा , यह आने वाला समय आपको जल्द ही बता देगा।