आखिर हिंदी में शर्म कैसी ??
हिंदी दिवस अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती हिंदी भाषा , जबकि विश्व एक बड़े मार्केट के रूप में भारत को देखता है मार्केटिंग में जरूरत पड़ने पर गूगल भी हिंदी में संवाद कायम करता है , तो फिर कहां से करोड़ों लोगों की भाषा पिछड़ी हुई है
ऋषिकेश , हिंदी दिवस अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती हिंदी भाषा , जबकि विश्व एक बड़े मार्केट के रूप में भारत को देखता है मार्केटिंग में जरूरत पड़ने पर गूगल भी हिंदी में संवाद कायम करता है , तो फिर कहां से करोड़ों लोगों की भाषा पिछड़ी हुई है , जरा सोचिएगा जरूर ।
रिपोर्ट _हरीश भट्ट
हस्ताक्षर
(हिंदी दिवस पर विशेष)
हिंदी दिवस पर विशेष.
“शर्म आती है! हिन्दी. अरे हिन्दी में हस्ताक्षर करते हो”. एक छोटी सी, लेकिन बहुत बड़ी बात. हस्ताक्षर, हमारी पहचान. हमारे होने या न होने में हमारे हस्ताक्षर ही मायने रखते है. किसी भी कार्यालय में आना-जाना, किसी भी दस्तावेज के संबंध में हमारी सहमति या असहमति को हमारे हस्ताक्षर द्वारा स्वीकार्य माना जाता है. कोई कितना भी पढ़ा-लिखा हो कभी-कभी न हस्ताक्षर तो करता ही है. कोई-कोई तो हस्ताक्षर करने भर से ही गर्व से चहकने लगता है. बस यही हस्ताक्षर जब हिन्दी में करने में शर्म महसूस होती हो तो जाना जा सकता है कि हिंदी की क्या औकात है, एक हिन्दी राष्ट्र में. अब चलिए दूसरी बात रोजमर्रा की जरूरत में शामिल आम बोलचाल के शब्दों में कई ऐसे शब्द है, जो अंग्रेजी भाषा से निकलकर हिंदी पर इस कदर सवार हो गए कि हिंदी की आवाज ही बंद हो गई. क्या कोई ऐसा है जो रेलगाड़ी को लौहपथ गामिनी कहने का जोखिम उठाएगा. अधिकांश का जवाब होगा यह कौन सा शब्द है. किसी भी देश की पहचान उसकी भाषा ही होती है. कोई भी अपने पहचान को नहीं मिटाना चाहता. लेकिन ब्रिटिशकाल के नियम-कानूनों और विदेशियों के सहारे चलने वाले देश में अंग्रेजी भाषा पर हिंदी को कैसे वरीयता दी जा सकती है. फिर एक बात और भी है कि दुनिया जहां की जानकारी जब अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध हो तो तब ऐसे में हिंदी को कौन पूछता है. हर कोई चाहता है कि मेरे बच्चे हिंदी जाने या न जाने लेकिन गलत ही बोले पर बोले इंग्लिश में ही. देसी पीने में शर्म और इंग्लिश पीने में गर्व तो फिर कैसे हो हिंदी का विकास. अब सरकार ने 14 सिंतबर को हिंदी दिवस घोषित कर रखा है, तो है. हिंदी दिवस पर कार्यक्रम होने है तो होने है. अब इसके लिए बजट है, तो है. बजट यानि पैसा. अब पैसा ठिकाने तो लगाना ही है, तो फिर वर्ष में एक बार हिंदी दिवस मना भी लिया तो क्या फर्क पड़ जाएगा. एक दिन में कोई विकास तो हो नहीं सकता, लेकिन जेब में कुछ रकम आ ही जाती है. तब ऐसे में हिंदी दिवस मनाने में कैसी शर्म.