योग यहां से पश्चिम पहुंचा अतीत के खंडर
हर साल हजारों की संख्या में विदेशी पर्यटक पहुंचता है खंडरो के दीदार करने , सरकार की अनदेखी के चलते बेजार है चौरासी कुटिया , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको संवारने के लिए बनाया है एक प्लान
रिपोर्ट _ कृष्णा रावत डोभाल
ऋषिकेश , उत्तराखंड को विश्व के नक्शे पर योग के अंतरराष्ट्रीय राजधानी के रूप में जाना जाता है यहीं से निकलकर भारतीय योग ने पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाई है लेकिन पश्चिम को ऋषिकेश से जोड़ने का जो श्रेय जाता है हो जाता है महर्षि महेश योगी को जिन्होंने साठ के दशक में गंगा के तट पर शंकराचार्य नगर का निर्माण किया और यहां योगशाला के रूप में 84 कुटिया बना कर योग सिखाने की शुरुआत करी, और यहां बड़ी संख्या में विदेशी योग सीखने के लिए दुनिया भर से आने लगे , धीरे-धीरे वन विभाग की लिस्ट खत्म होने पर महर्षि महेश योगी ने इस पूरी जगह खाली कर दिया , उनके पीछे बचे तो चौरासी कुटिया या कहें बीटल्स आश्रम के खंडहर जिन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में आज भी विदेशी पर्यटक यहां का रुख करते हैं लेकिन सरकार की नीतियों के चलते चौरासी कुटिया डिवेलप नहीं हो पा रही है , हालांकि अब नरेंद्र मोदी की दिलचस्पी चौरासी कुटिया में बड़ी है जिससे लग रहा है जल्द ही इस जगह के दिन बहूरेंगे ।
सरकार की इच्छा शक्ति की कमी से आज भी बेजार है योग की कैपि
राजा जी टाइगर रिजर्व पार्क में है बीटल्स आश्रम चौरासी कुटिया – योग की पहचान की विरासत को सरकार से संरक्षित करने और योग फेस्टिवल का शुभारम्भ यहाँ से करने की अपील
ऋषिकेश योग की राजधानी के रूप में पुरे विश्व में अपनी खास पहचान रखता है हर साल 1 मार्च से ऋषिकेश में इंटर
विदेशियों की जुबान पर ऋषिकेश के बीटल्स आ
आदमी के लिए खोल तो दी गयी है लेकिन इसका फायदा किसी भी योग प्रेमी को नहीं मिल पा रहा है क्योंकि सरकार राजाजी टाइगर रिजर्व होने के चलते वन कानूनों का हवाला देकर इसके संरक्षण कोई रुचि नहीं लेती है साठ के दशक में बसाए गए शंकराचार्य नगर चौरासी कुटिया को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में देसी विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं लेकिन सरकार की नीति के चलते यहां पहुंचकर सिर्फ खंडरो के ही दर्शन को हो पाते हैं , यहां पहुंचने वाले पर्यटक अब सरकार से इस विरासत को संभालने की मांग कर रहे हैं जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को पहचान दिलाने वाली है अंतराष्ट्रीय योग नगरी आने वाली पीढ़ी को अतित की याद दिला सके.