22 सालों के सफर में क्या खोया क्या पाया
22 सालों में कितना बदला उत्तराखंड -- पहाड़ पर विकास को मुख चिढ़ा रहा है पलायन रोज़गार और विकास अभी भी क्यों है पहाड़ से दूर
रिपोर्ट _कृष्णा रावत डोभाल
देहरादून, उत्तराखंड राज्य निर्माण के 22 सालो का सफ़र पूरा हो चूका है और ये राज्य अब 23वे साल में प्रवेश कर रहा है इसे में सवाल ये उठता है की इन 22 सालो के सफ़र में उत्तराखंड राज्य अपनी अवधारणा पर कितना खरा उतरा? क्या आज भी पहाड़ का युवा पलायन का दंश झेलने से बच पाया है ? , राजधानी की सड़के रोज नए आन्दोलन से क्यों जाम रहती है? उत्तराखंड का जन्म एक बड़े राज्य जनांदोलन के रूप में हुआ यहाँ की आम जनता उत्तर प्रदेश में रहते हुए विकास और रोज़गार के लिए संतुष्ट नहीं हो पा रही थी , रोज़गार और पहाड़ का विकास यहाँ की सबसे बड़ी जरुरत थी , रोजगार की मांग को लेकर छात्रों ने आंदोलन शुरू किया जिसकी आंच धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में फैलने लगी और इस में मातृशक्ति ने एक नई जान फूंक दी आरक्षण का विरोध और रोजगार का मुद्दा कब राज्य निर्माण के बड़े आंदोलन में बदल गया और देखते ही देखते पहाड़ों से मैदानों की तरह जनसैलाब उमड़ने लगा और लम्बे जनसंघर्ष के बाद आखिरकार 9 नवम्बर 2000 को राज्य का निर्माण हो गया . अब तक के 22 सालो के सफ़र में भी उत्तराखंड क्या जन भावनाओ पर खरा उतरा ये सवाल आज भी लोगो के मन को कचोटता है।
वहीँ पलायन से जन शून्य हो चुका राजधानी से मात्र 35 किमी दूर गांव बखरोटी के पूर्व प्रधान बुद्धिप्रसाद जोशी का कहना है कि इन 22 सालो में उत्तराखंड का विकास उस तरह नहीं हुआ, जिसकी उम्मीद उत्तराखंड वासियों ने की. वही उत्तराखंड के आम आदमी भी ये मानते आज भी पहाड़ विकास रोज़गार की बाट जोहते हुए पलायन की मार झेल रहा है, सचाई ये है कि इन 22 सालों में भाजपा कांग्रेस और सभी छेत्रिय दल आज भी पहाड़ के पानी और पहाड़ की जवानी को नहीं रोक पाए है. हालात ये है कि छात्र शिक्षा के लिए पलायन कर रहे है,युवा रोजगार के लिए , बुजुर्ग अच्छे स्वास्थ्य, और रही राजधानी कि बात वो भी आज 22 सालो के सफ़र में राजनीती का शिकार हो गयी है,कर्मचारी से लेकर आम जनता सड़को पर हक़ कि मांग कर रही है. नेताओं के विकास की कहानी सारे मिथक तोड़ चुकी है कल तक फटेहाल घूम रहे नेता आज करोड़पति और अरबपति हो चुके हैं , लेकिन उनके चुनावी क्षेत्र आज भी बेहाल है और विकास का इंतजार कर रहे हैं , नेताओं की गरीबी और फटे हाल की कहानी हर कोई कहता है और अब उनकी अमीरी के चर्चे हर उत्तराखंड वासियों की जबान पर रहते हैं लेकिन जनता आज भी रोजी रोटी के इंतजार में बैठी हुई नौजवान से बुढ़ापे की ओर जा रही है , उत्तराखंड में नेता बनने का कारोबार लगातार फलता फूलता नजर आ रहा है , विकास के नाम पर 40 से 45 परसेंट कमीशन लेकर नेता सिर्फ अपना निजी विकास कर रहे हैं और उनके द्वारा बनाए गए निर्माण कार्य कुछ ही सालों में मिट्टी में मिल जा रहे हैं यही नवोदित राज्य की सबसे बड़ी त्रासदी को दी जा रही है जिस पर ना संविधान रक्षकों का ध्यान है और ना ही वित्तीय घोटाले पर लगाम लगाने वाले विभागों का सिर्फ भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार ही यहां की जनता के हिस्से में आ गया है। उत्तराखंड के 22 सालो के सफ़र में जहा मैदान विकास की नयी इबारत लिख रहे वहीं अनियोजित विकास और दूरदर्शिता की कमी ने उत्तराखंड के पहाड़ पर अभी तक विकास की कोई भी ठोस उम्मीद नहीं जगाई, फिर भी लोगों को उम्मीद है की आने वाले सालों में उत्तराखंड एक बेहतर राज्य के रूप में उभरेगा और पहाड़ रोजगार से भरपूर होगे , गांव फिर से आबाद होगे , इसी उम्मीद पर पहाड़वासी कायम है ।।