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फ्यूली से जुड़ी फूल देई की परंपरा का आगाज

पहाड़ों पर उगने वाले प्राकृतिक फूल फ्यूली से जुडी लोक कथा पर आधारित लोक पर्व आज से स्कूली बच्चों के साथ भी जुड़ेगा, चैत्र सक्रांति की सभी को पहाड़ दस्तक की ओर से बधाई

 

रिपोर्ट_कृष्णा रावत डोभाल

देहरादून , प्रकृति की उपासना का पर्व फूल देई हर साल उत्तराखंड में चेत्र की सक्रांति से मनाया जाता है आज चैत्र की सक्रांति है और आज का दिन उत्तराखंड के लिए खास होता है इसी को मद्देनजर रखते हुए शिक्षा विभाग ने स्कूली शिक्षा में फूल देई को स्कूलों में मनाने का निर्णय लिया है जिससे नई पीढ़ी के मन में बचपन से ही प्रकृति प्रेम जागृत हो सके और वह अपनी प्रकृति को संरक्षित करने के लिए तैयार रहें।

उत्तराखंड की सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में चेत्र सकति से शुरू हुआ यह त्यौहार पूरे महीने भर चलता है क्योंकि बसंत अपने यौवन पर होता है और प्रकृति का श्रृंगार पुष्पों के द्वारा देखने लायक होता है उत्तराखंड के पहाड़ों पर तरह-तरह की प्रजाति के फूल उगते हैं जिन्हें ग्रामीण बच्चे तोड़कर घरों की देहरी पर सजाते हैं और घर के बड़े बुजुर्ग इन बच्चों को अपने आशीर्वाद के साथ कुछ भेट प्रदान करते हैं यह परंपरा उत्तराखंड में सदियों से चली आ रही है हालांकि धीरे-धीरे पलायन ने पहाड़ों के रीति-रिवाजों पर भी असर डाला है लेकिन एक बार फिर उत्तराखंड में अपने जड़ों से जुड़ने का जज्बा बना है और ऐसे में अगर सरकार स्थानीय रीति-रिवाजों को नई पीढ़ी के साथ जोड़ती है तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड  के त्यौहार हमारी पहचान बनेंगे ।

सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नाट्य कर्मी और शैलनट के संस्थापक श्रीश डोभाल का कहना है कि उत्तराखंड के पहाड़ अपनी धार्मिक पारंपरिक और ऐतिहासिक धरोहर से भरे पड़े हैं, ऐसे में प्रकृति उपासना का पर्व फूलदेई उत्तराखंड के जनमानस के प्रकृति से जुड़ाव को दिखाता है, जिसका जिक्र यहां की लोकगाथा मे मिलता है और पहाड़ में पहाड़ सा जीवन जी रहे लोगो में उत्साह का संचार करता है इसको स्कूली बच्चों से जोड़ कर शिक्षा विभाग एवं प्रदेश सरकार यहां की विरासत को संजोने का काम कर रही है जिसकी तारीफ होनी चाहिए।

वहीं उत्तराखंड लैंडस्केप को अपने कैमरे के माध्यम से विश्व पटल पर दिखाने वाले  डा मनोज रांगड का कहना है कि यूं तो उत्तराखंड के पहाड़ हर मौसम में अपने प्राकृतिक नजारों से प्रकृति की खूबसूरती को अलग अलग ढंग से दिखाते हैं लेकिन चैत्र मास में उत्तराखंड के पहाड़ों पर उगने वाला प्राकृतिक फूल फ्योली अपने पीले रंग से पूरे पहाड़ों को रंग लेता है और इसी से जुड़ी है इस त्यौहार की परंपरा जो लोक कथाओं में प्रचलित है।

लोक कथा के अनुसार फ्यूली पहाड़ पर रहने वाली एक सुंदर लड़की थी जिसका परिवार खेती-बाड़ी करके अपना जीवन यापन करता था पहाड़ों पर एक राजकुमार शिकार करने आया तो उसकी नजर इस सुंदर कन्या फ्योलि पर पड़ी जिसे देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गया उसने कन्या से विवाह का प्रस्ताव रखा जिस पर परिवार की रजामंदी से शादी कर दी , राजकुमार  फ्यूली को लेकर अपने राज्य में चला गया लेकिन प्रकृति के बीच रहने वाली फ्यूली का मन राज महल में नहीं लगा और वह वापस अपने मायके आकर रहने लगी लेकिन धीरे-धीरे वह कमजोर होती गई और मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई, बाद में राजकुमार ने गांव आकर फ्यूली की अंतिम इच्छा पूछी तो फिर लेने का उसके मरने के बाद उसे गांव की किसी मुड़ेर में समाहित कर देना ,उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उसके मायके पास उसे दफना दिया गया , जिस जगह उसे दफनाया गया था वहां पर पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलने लगा ,इस फूल का नाम ग्रामीणों ने फ्यूली दे दिया उसकी याद में पहाड़ों में फूलों का यह त्यौहार मनाया जाता है।

 

Krishna Rawat

Journalist by profession, photography my passion Documentaries maker ,9 years experience in web media ,had internship with leading newspaper and national news channels, love my work BA(Hons) Mass Communication and Journalism from HNBGU Sringar Garhwal , MA Massa Communication and Journalism from OIMT Rishikesh

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