रतजगे और जिताऊ उम्मीदवार मैनेजमेंट में जुटे दल
स्ट्रांग रूम के बाहर रतजगा और जिताऊ उम्मीदवारों के मैनेजमेंट में जुटे दो बड़े दल, जरा सी चूक उत्तराखंड में बिगड़ सकती है जीत का गणित , सभी को डर के नेताजी बिक ना जाए
रिपोर्ट_कृष्णा रावत डोभाल
देहरादून , एक कहावत सूत न कपास और जुलाहो में लठम लट्ठा कुछ ऐसी ही स्थिति उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस में देखने को मिल रही है , जैसे-जैसे मतगणना की तिथि नजदीक आ रही है वैसे वैसे राष्ट्रीय दलों को अपने जिताऊ उम्मीदवारों के मैनेजमेंट में जुट गए हैं , स्ट्रांग रूम के बाहर पार्टी कार्यकर्ता सुरक्षाकर्मियों के साथ साथ स्ट्रांग रूम पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं ,रात भर जागकर पहरा दिया जा रहा है ,साथ ही थाली के बैंगन विधायकों पर कड़ी नजर भी रखी जा रही है कि जीत के बाद उम्मीदवार पाला ना बदल ले ।
उत्तराखंड में बीते कुछ वर्षों से नेताओं के लुढ़कने करने की परंपरा तेजी से मजबूत होती जा रही है 2022 के चुनाव से पहले उत्तराखंड की जनता दलबदल का ट्रेलर देख चुकी है , राष्ट्रीय दलों का मानना है कि असली फिल्म 10 तारीख को रिलीज होगी जिसमें राष्ट्रीय दलों में बोली लगने का सिलसिला शुरू हो जाएगा ,बहुमत का आंकड़ा जुटाने के लिए नेताओं की कीमत आसमान छूने लगेगी और नेता जी जनता के विश्वास मत को किनारे रखकर तगड़ी बोली पर बिक जायेंगे।
सबसे ज्यादा डर कांग्रेस को लग रहा है क्योंकि दूध का जला छाछ को भी फूंक मार मार कर पीता है , कांग्रेस पिछले ट्रम में ये झटका झेल चुकी है , अब अपने जिताऊ कैंडिडेट को राज्य से दूर किसी सुरक्षित स्थान पर भेजने की तैयारी में है , कुछ ऐसी स्थिति निर्दलीय और दूसरी पार्टी के नेताओं की भी बनी हुई है जो सत्ता की मलाई को देखकर बहुमत बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका देख रहे हैं दोनों राष्ट्रीय दल भीतर घात के शिकार हैं , और मतदाता की खामोश पोजीशन सही रिजल्ट के आंकड़े नहीं दिखा पा रही है ,ऐसे में 10 तारीख उत्तराखंड के लिए महत्वपूर्ण होने जा रही है , दलों की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही है ,मंथन पर मंथन ,कभी दिल्ली कभी देहरादून में चल रहा है विधायक अपनी बोली के इंतजार में दम साधे बैठे हुए हैं जनता जनार्दन की निगाहें इस पोलिटिकल ड्रामे पर बनी हुई हैं ।