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प्रकृति के सिंगार का त्योहार फूलदेई

उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों के साथ-साथ अब अपनी संस्कृति के प्रति मैदानी इलाकों में बसे प्रवासी उत्तराखंडी भी अपनी नई पीढ़ी को अपने रीति-रिवाजों से जोड़ने की कोशिश में लगे हैं

 

रिपोर्ट _कृष्णा रावत डोभाल

ऋषिकेश ,उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व फूलदेई त्यौहार आगाज पहाड़ों सहित अब मैदानी इलाकों में भी शुरू हो गया है प्रकृति के इस पर्व को मनाने के लिए उत्तराखंड के प्रवासी भी जोर शोर से अपनी जड़ों को मजबूत करने में जुट गए हैं। पहाड़ों पर रंग बिरंगे फूलों के साथ साथ प्रकृति नया सिंगार करती है , पहाड़ी अंचलों में छोटे बच्चे इस त्यौहार को बड़ी लगन और धूमधाम से मनाते हैं बच्चों की टोली सुबह ही घरों से निकलकर जंगली फूलों को इकट्ठा करती है और पहाड़ी घरों की चौखट पर उनको सजाती है घर के मालिक भी फूलों को देख कर खुश होकर बच्चों को उनकी मेहनत के बदले में कुछ ना कुछ उपहार देते हैं यह परंपरा लंबे समय से पहाड़ों पर चली आ रही है ।

अब इसका अर्थ है मैदानी इलाकों में बसे प्रवासी उत्तराखंड यों में भी देखा जा रहा है ,फूलदेई सक्रांति का यह पर्व तीर्थ नगरी ऋषिकेश में पारंपरिक ढंग से मनाया गया।  बच्चों ने फूलदेई, छम्मा देई,देणी द्वार,भरी भकार ये देली बारंबार नमस्कार,पुंजे द्वार बारंबार, फुले द्वार का गीत गाकर लोगों की दहलीज पर फूल डालें। तीर्थ नगरी के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में फुलदेई संक्रांति से पूरे माह तक दहलीज पर रंग बिरंगे फूल बिखरने की परंपरा है। ऋषिकेश शहर आज महानगरी रूप लेने के कारण यहां की जीवन शैली में महानगरों की तरह बदलने लगी है लेकिन ऋषिकेश में रहने वाले पर्वतीय मूल के अधिकांश लोग आज भी अपनी परंपराओं को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं। उग्रसैन नगर निवासी अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी ने बताया कि फूलदेई संक्रांति हमारी परंपरा से जुड़ा लोग त्यौहार है पहाड़ से पलायन के साथ हम अपनी संस्कृति व विरासत को भी भुला रहे हैं जो हमारी समृद्ध संस्कृति के लिए नुकसानदेह है उन्होंने सभी लोगों से अपने तीज त्योहार और परंपराओं का निर्वहन करने की अपील करते हुवे कहा की किसी भी समाज के विकास के लिए वहां के रीति रिवाज एवं लोकपर्वो का विशेष योगदान रहा है इस शुभ पर्व पर हम सबको मिलकर अपने नोनिहालो से घर की देहरी पर पुष्प वर्षा करा उन्हें शुगुन तथा उपहार देकर इस त्यौहार को जीवंत बनाये रखने के प्रयास करने चाहिए। डॉ नेगी ने कहा कि फूलदेई पर्व अब कुमाऊं की वादियों तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि पूरे उत्तराखंड में चैत्र माह के पहले दिन ऋतु परिवर्तन का पर्व फूलदेई धूमधाम से मनाया जाने लगा है यह पर्व एक और उत्तराखंड की संस्कृति को उजागर करता है तो दूसरी और प्रकृति के प्रति पहाड़ के लोगों के सम्मान और प्यार को भी दर्शाता है इसके अलावा भारतीय परंपराओं को कायम रखने के लिए भी यह पर्व त्यौहार खास है इस त्यौहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है इसका सीधा संबंध प्रकृति से है।

Krishna Rawat Dobhal

Awarded by Bjp mahila morcha on international women's day for the field of Journalism, Nari shakti samman by Mahila Ayog(2023),Gauradevi saman 2014,Journalist by profession, photography my passion Documentaries maker ,9 years experience in web media ,had internship with leading newspaper and national news channels, love my work BA(Hons) Mass Communication and Journalism from HNBGU Sringar Garhwal , MA Massa Communication and Journalism from OIMT Rishikesh

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