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चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी को मिले सम्मान

विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन की जननी रही गोरा देवी को नहीं मिला अभी तक कोई बड़ा सम्मान सरकार बेखबर 

 

रिपोर्ट_कृष्णा रावत डोभाल

 

चिपको आंदोलन की  वर्षगांठ पर विशेष —-

गोरा देवी को मिले भारत रत्न सम्मान — बुद्धिजीवी और  चिपको आन्दोलन करियो ने उठाई मांग , 

         विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन की जननी रही गोरा देवी को नहीं मिला अभी तक कोई बड़ा सम्मान सरकार बेखबर       
 
ऋषिकेश — उत्तराखंड की मात् शक्ति हमेशा से ही पर्यावरण के प्रति बड़ी ही संवेदन  रही है जंगल को अपना मायका मानने वाली यहाँ की महिलाये आज भी वनों के सुरक्षा में सबसे आगे रही , 1974 में गोरा देवी के विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन का की गूंज आज पुरे विश्व में है लेकिन इस आन्दोलन की जननी को अभी तक न भारत सरकार ने और न ही उत्तराखंड सरकार कोई बड़ा पुरूस्कार दिया है स्व .गोरा देवी के  भारत रत्न सम्मान देने की मांग अब पर्यावरविद और बुद्धिजीवी उठाने लगे है इस रिपोर्ट के जरिये एक नजर डालते विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन की जननी, गोरा देवी कार्य पर  —-  
 1974 में शुरु हुये विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन की जननी, प्रणेता श्रीमती गौरा देवी जी की, जो चिपको वूमन के नाम से मशहूर हैं। 1925 में चमोली जिले के लाता गांव के एक मरछिया परिवार में श्री नारायण सिंह के घर में इनका जन्म हुआ था। गौरा देवी ने कक्षा पांच तक की शिक्षा भी ग्रहण की थी, जो बाद में उनके अदम्य साहस और उच्च विचारों का सम्बल बनी। मात्र ११ साल की उम्र में इनका विवाह रैंणी गांव के मेहरबान सिंह से हुआ, रैंणी भोटिया (तोलछा) का स्थायी आवासीय गांव था, ये लोग अपनी गुजर-बसर के लिये पशुपालन, ऊनी कारोबार और खेती-बाड़ी किया करते थे। गौरा देवी ने ससुराल में रह्कर छोटे बच्चे की परवरिश, वृद्ध सास-ससुर की सेवा और खेती-बाड़ी, कारोबार के लिये अत्यन्त कष्टों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने पुत्र को स्वालम्बी बनाया, उन दिनों भारत-तिब्बत व्यापार हुआ करता था, गौरा देवी ने उसके जरिये भी अपनी आजीविका का निर्वाह किया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बन्द हो गया और खाली समय में वह गांव के लोगों के सुख-दुःख में सहभागी होने लगीं। इसी बीच अलकनन्दा में १९७० में प्रलंयकारी बाढ़ आई, जिससे यहां के लोगों में बाढ़ के कारण और उसके उपाय के प्रति जागरुकता बनी और इस कार्य के लिये प्रख्यात पर्यावरणविद श्री चण्डी प्रसा भट्ट ने पहल की। भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार को चमोली की सुध आई और यहां पर सैनिकों के लिये सुगम मार्ग बनाने के लिये पेड़ों का कटान शुरु हुआ। जिससे बाढ़ से प्रभावित लोगों में संवेदनशील पहाड़ों के प्रति चेतना जागी। इसी चेतना का प्रतिफल था, हर गांव में महिला मंगल दलों  की स्थापना, १९७२ में गौरा देवी जी को रैंणी गांव की महिला मंगल दल का अध्यक्ष चुना गया। इसी दौरान वह चण्डी प्रसा भट्ट, गोबिन्द सिंह रावत, वासवानन्द नौटियाल और हयात सिंह जैसे समाजिक कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में आईं। जनवरी १९७४ में रैंणी गांव के २४५१ पेड़ों का छपान हुआ। २३ मार्च को रैंणी गांव में पेड़ों का कटान किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ, जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया। प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तिथि २६ मार्च तय की गई, जिसे लेने के लिये सभी को चमोली आना था। इसी बीच वन विभाग ने सुनियोजित चाल के तहत जंगल काटने के लिये ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया कि २६ मार्च को चूंकि गांव के सभी मर्द चमोली में रहेंगे और समाजिक कायकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जायेगा और आप मजदूरों को लेकर चुपचाप रैंणी चले जाओ और पेड़ों को काट डालो।
इसी योजना पर अमल करते हुये श्रमिक  रैंणी के देवदार के जंगलों को काटने के लिये चल पड़े। इस हलचल को एक लड़की द्वारा देख लिया गया और उसने तुरंत इससे गौरा देवी को अवगत कराया। गांव में उपस्थित २१ महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकर वह जंगल की ओर चल पड़ी। इनमें बती देवी, महादेवी, भूसी देवी, नृत्यी देवी, लीलामती, उमा देवी, हरकी देवी, बाली देवी, पासा देवी, रुक्का देवी, रुपसा देवी, तिलाड़ी देवी, इन्द्रा देवी शामिल थीं। इनका नेतृत्व कर रही थी, गौरा देवी, इन्होंने खाना बना रहे मजदूरो से कहा”भाइयो, यह जंगल हमारा मायका है, इससे हमें जड़ी-बूटी, सब्जी-फल, और लकड़ी मिलती है, जंगल काटोगे तो बाढ़ आयेगी, हमारे बगड़ बह जायेंगे, आप लोग खाना खा लो और फिर हमारे साथ चलो, जब हमारे मर्द आ जायेंगे तो फैसला होगा।” ठेकेदार और जंगलात के आदमी उन्हें डराने-धमकाने लगे, उन्हें बाधा डालने में गिरफ्तार करने की भी धमकी दी,  लेकिन यह महिलायें नहीं डरी। ठेकेदार ने बन्दूक निकालकर इन्हें धमकाना चाहा तो गौरा देवी ने अपनी छाती तानकर गरजते हुये कहा “मारो गोली और काट लो हमारा मायका”  इस पर मजदूर सहम गये। गौरा देवी के अदम्य साहस से इन महिलाओं में  भी शक्ति का संचार हुआ और महिलायें पेड़ों के चिपक गई और कहा कि हमारे साथ इन पेड़ों को भी काट लो। इस प्रकार से पर्यावरण के प्रति अतुलित प्रेम का प्रदर्शन करने और उसकी रक्षा के लिये अपनी जान को भी ताक पर रखकर गौरा देवी ने जो अनुकरणीय कार्य किया, उसने उन्हें रैंणी गांव की गौरा देवी से चिपको वूमेन फ्राम इण्डिया बना दिया। पहाड़ दस्तक ने गोरादेवी के सम्मान के लिए जनसमर्थन के लिए आवाज उठानी शुरू की है जिसमे उसे उत्तराखंड के बुद्धिजीवी समाज का समर्थन मिलना शुरू हो गया है ,उत्तराखंड के साहित्यकार और नाट्यकर्मी श्रीश डोभाल जनकवि अतुल शर्मा , पबोध उनियाल , वरिष्ठ पत्रकार हरीश तिवारी , दुर्गा नोटियाल , अनुराग वर्मा का कहना है कि  मोदी सरकार को चाहिए कि उत्तराखंड से पर्यावरण की आवाज़ उठाने वाली एक उत्तराखंड की ग्रामीण महिला के उलेखनीय कार्यो को सम्मान मिलना चाहिए है    स्व .गोरा देवी के  भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया जाये . सरकार को इस और ध्यान देना चाहिए और गोरा देवी को सम्मान मिलना चाहिए 
 

Krishna Rawat Dobhal

Awarded by Bjp mahila morcha on international women's day for the field of Journalism, Nari shakti samman by Mahila Ayog(2023),Gauradevi saman 2014,Journalist by profession, photography my passion Documentaries maker ,9 years experience in web media ,had internship with leading newspaper and national news channels, love my work BA(Hons) Mass Communication and Journalism from HNBGU Sringar Garhwal , MA Massa Communication and Journalism from OIMT Rishikesh

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