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टिहरी राजवंश की अनूठी परंपरा गाडू घड़ी
राजकुमारी श्रीजाटीका शाह की अगुवाई में निकाला भगवान बद्री विशाल के सिंगार और अभिषेक के लिए तिल का तेल, पीले वस्त्रों में सजी महिलाओं ने अपने हाथों से पीस पीस कर निकाला तिल का तेल
रिपोर्ट_ कृष्णा रावत डोभाल
नरेंद्र नगर , आज से भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने की परम्परा का श्री गणेश हो गया है | सदियों पुरानी गाडू घडी परम्परा के तहत आज टिहरी राज़ परिवार की महिलाओं और राज परिवार से जुड़ी महिलाओं द्वारा हाथों से निकाले तिलों के तेल को घड़ों में भरकर बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना किया गया | इसी तेल से कपाट खुलने के बाद अगले ६ महीने भगवान का श्रृंगार और अभिषेक किया जाएगा

उत्तराखंड में टिहरी नरेश के नरेंदर नगर स्थित राजमहल की | जहाँ भगवान बद्रीनाथ के श्रृंगार और पूजा के लिए तिल का तेल निकलने की गाडू घडी परम्परा का निर्वहन हो रहा है | पीले वस्त्रो से सजी धजी यह सुहागिन महिलाएं राजमहल मे टिहरी राजवंश की राजकुमारी श्रीजा टिकाशाह के साथ आज तेल निकाल रही है , तेल कलश को भरने के लिये तिलों का निकाल रही है | यह परमपरा राज परिवार सदियों से निभाता आ रहा है तेल कलश को भरने की लिये ये महिलाये पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए मुह पर पीले रंग का कपडा बांध कर तेल निकालने का काम करती है / ये पूरा काम टिहरी की महारानी और राज परिवार से जुडी महिलाये के साथ सुहागन महिला ह़ी करती है

सुबह से ही वर्त रख कर भगवान की सेवा के लिए दूर दराज के छत्रो से आई ये सभी महिलाय किसी न किसी रूप से राज महल की इस परम्परा से जुडी हुयी है , रामेश्वरी नेगी का कहना है कि अपने हाथो से तिल को पीस कर उसका तेल निकल कर बद्रीश भगवान् की शीतनिद्रा से जागने के बाद रोज ही भगवान् की मूर्ति की मालिश और अभिषेक के लिए काम आता है इस परम्परा से जुड़ कर सभी जन्मो – जन्मो का पुन्य कमा लेती है और अपने को सोभाग्यशाली मानती है ।
सदियों से चली आ रही इस परंपरा को टिहरी राज परिवार बखूबी से निभाता चला आ रहा है | मान्यता है कि टिहरी के राजा को भगवान बद्रीनाथ का बोलता रूप कहा जाता है है | इसीलिए राज परिवार का चार धाम यात्रा में महत्वपूर्ण स्थान है , और यह घड़ी में निकाला हुआ तिल का तेल पंच प्रयाग से होता हुआ बद्रीनाथ पहुंचता है और कपाट खुलने पर शीत निंद्रा से जागने पर भगवान के अभिषेक में काम आता है ।