उत्तराखंडदुनियासाहित्य

क्या कोई अपनी मदर टंग को भूल सकता है

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मदर टंग के इस्तेमाल पर जोर और उसके सम्मान के लिए ऋषिकेश से उठी आवाज

 

रिपोर्ट_कृष्णा रावत डोभाल
ऋषिकेश, आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है किसी भी व्यक्ति को उसकी अपनी भाषा और मदर टंग का सम्मान करना चाहिए जो उसे उसकी जड़ों से जोड़ती है मातृभाषा दिवस पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि अतंर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हमें अपनी मातृभाषा और संस्कृति से जुड़ने का संदेश देता है। अपनी मातृभाषा को बढ़ावा देने, भाषा और बहुभाषावाद से समावेशी विकास, भाषायी अंतर से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता – अखंडता एवं एक भारत – श्रेष्ठ भारत की भावना का निर्माण करने हेतु प्रोत्साहित करता है।


आज का दिन हमें विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने का संदेश देता है। विश्व में 7,000 से अधिक भाषाएँ हैं, जिसमें से सिर्फ भारत में ही लगभग 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाएँ, 1635 मातृभाषाएँ और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं। जिन्हें जीवंत और जागृत बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है।
सर्वे के अनुसार दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से लगभग 43 प्रतिशत भाषाएँ लुप्तप्राय हैं और लगभग कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह दी गई है।
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि ‘‘माँ, मातृभूमि और मातृभाषा ये तीनों ही संस्कारों की जननी  है।’’ मातृभाषा हमें अपने मूल और मूल्यों से जोड़ती  है। माँ से जन्म, मातृभूमि से हमारी राष्ट्रीयता और मातृभाषा से हमारी पहचान होेती है। स्वामी जी ने सभी देशवासियों का आह्वान करते हुये कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के लिये जरूरी है कि अपनी मातृभाषा में वार्तालाप किया जाये।
भारत की संस्कृति विविधता में एकता, बहुभाषा, भाषायी सांस्कृतिक विविधता एवं भाषायी विविधता व बाहुल्यता की है परन्तु यही भारत की अनमोल संपदा भी है। स्वामी जी ने कहा कि लुप्त होती भाषायें अत्यंत गंभीर विषय हैं क्योंकि भाषाओं का लुप्त होना अर्थात संस्कृति का विलुप्त होना इसलिये क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वदेशी भाषाओं का संरक्षण, समर्थन और उन्हें बढ़ावा देना नितांत आवश्यक हैं।
स्वामी जी ने कहा कि अपनी भाषा, लिपि और अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रखना हम सभी का परम कर्तव्य हैं। हमें एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा जहां अपनी मातृभाषा के स्थान पर किसी दूसरी भाषा को स्थापित न करना पड़े। आगे बढ़ने के लिये भाषा कोई बाधा नहीं है, अपनी मातृभाषा में भी ज्ञान प्राप्त करते हुये नया सृजन किया जा सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जहाँ तक संभव हो छोटे बच्चों की शिक्षा का माध्यम अपनी मातृभाषा ही होना चाहिये क्योंकि मातृभाषा में पढ़ना बच्चों के लिये भी सहज होगा। बच्चे बचपन से जो भाषा बोलते हैं उस भाषा को सहजता से स्वीकार कर सकते हैं। भाषा की सहजता से बच्चों की रचनात्मकता में भी वृद्धि होगी और अपनी भाषा में विचारों की अभिव्यक्ति भी सरलता से की जा सकती हैं।

Krishna Rawat

Journalist by profession, photography my passion Documentaries maker ,9 years experience in web media ,had internship with leading newspaper and national news channels, love my work BA(Hons) Mass Communication and Journalism from HNBGU Sringar Garhwal , MA Massa Communication and Journalism from OIMT Rishikesh

Related Articles

Back to top button
Translate »