आपदा के दंश _एक यात्रा जो पूरी नही हुई
प्रकृति के आगे बौना इंसान , फिर भी प्रकृति के दोहन में सबसे आगे , 10 साल का सफर हालांकि आपदा के निशान मिट गए हैं , केदार पुरी फिर से नए रूप में नजर आ रही है केंद्र सरकार दिल खोलकर पुनर्निर्माण करवा रही है , लेकिन क्या प्रकृति के नियम कायदों पर राज्य सरकार गंभीरता से सोच रही है, भीड़ के रिकॉर्ड टूट रहे हैं सुरक्षा पर कितना फोकस है ये समय पर निर्भर है
रिपोर्ट _कृष्णा रावत डोभाल
रूद्रप्रयाग , प्रकृति से मानव के संघर्ष कि जीती जागती मिसाल बन गई वो 16 जून की रात जब प्रकृति ने जल प्रलय से केदारनाथ धाम में अपना रौद्र रूप दिखाया जिस की भेंट चढ़ गए हजारों श्रद्धालु जिनके परिवार आज भी उस यात्रा को सोच कर कांप उठते हैं , उत्तराखंड में इस तरह का जल प्रलय अपने जीवन में हमने पहली बार ही देखा था , जब इंसान प्रकृति के आगे बोना साबित होता चला गया , बाबा केदार का मंदिर सलामत रहे गया लेकिन आसपास का मंजर जलप्रलय में तिनकों की तरह बह गया।
उत्तराखंड में आई इस जल प्रलय ने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया , हर कोई अपने परिजनों की तलाश में उत्तराखंड पहुंचने लगा , कुछ खुश किस्मत अपने परिजनों को मिल पाए और कुछ आज भी अपनो के इंतजार में है, वक्त धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा केदारनाथ में तबाही के बाद समय की रफ्तार 10 साल आगे ले आई है केंद्र सरकार ने देव स्थान के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाकर नए रूप में केदारनाथ को विकसित कर दिया है केदार पुरी समय के साथ साथ नए रंग रूप में नजर आने लगी है, लेकिन आज की तारीख गवाह है प्रकृति के उस हिसाब किताब की जो आज भी उत्तराखंड सहित पूरे देश के लोगों में एक पीड़ा की अनुभूति को जगा देती है ।
हम कह सकते हैं फिजिकल रूप से केदारपुरी को दोबारा बसा दिया गया, लेकिन लगातार बढ़ती भीड़ प्राकृतिक से खिलवाड़ की ओर ले जा रही है, ज्यादा अति प्रकृति कभी बर्दास्त नही करती आज हम कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ले लेकिन प्रकृति के आगे हम सब बोनी ही साबित होते रहेंगे समय है सचेत होकर प्रकृति के नियम कायदे के पालन का नदियों को गादेरो के पानी को उनका रास्ता मिलना चाहिए आवश्यक भीड़ हिमालय का इकोसिस्टम बिगाड़ रही है , जिस पर सचेत होकर प्रकृति के साथ जीना सीखना होगा, बे वजह के क्षणिक फायदे कब मुसीबत का सबब बन जाए इसके बारे में कोई कह नहीं सकता , सरकार आज के दिन को ध्यान में रखकर पिछली गलतियों से सीख कर आगे बढ़े यही सबसे बड़ी सीख होगी, कंक्रीट के जंगल में हम कितने तैयार करें लेकिन प्रकृति सब पर भारी रहती है ।
पहाड़ दस्तक की ओर से उन सभी दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि जो यात्रा पर निकले थे पर अपने घर वापस ना लौट के आ सके , आपदा का दंश हमेशा उन परिवारों को