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कर्नाटक चुनाव परिणाम उत्तराखंड के लिए सबक
उत्तराखंड में बीजेपी की सियासत को कर्नाटक परिणाम दिखा गए आईना, महंगाई,हवाबाजी ,भ्रष्टाचार और महिला और युवाओं की अनदेखी पड़ सकती है भारी
रिपोर्ट _कृष्णा रावत डोभाल
देहरादून , कर्नाटक चुनाव कांग्रेस की जीत ने बीजेपी को कहीं ना कहीं सोचने पर मजबूर कर दिया, पार्टी जहां भी सत्ता में काबिज है वहां अपनी जमीन कैसे बचाए , सोशल मीडिया सहित सार्वजनिक मंच पर राहुल गांधी की यात्रा को टारगेट करते हुए बीजेपी मीडिया सेल ने अनाप-शनाप बयानबाजी करके अपनी जड़े खुद ही काटने शुरू कर दी थी, वही सत्ता से दूर रही कांग्रेस हर बात को गंभीरता से लेकर आगे बढ़ती रही ।
कुछ इसी तरह के हालात उत्तराखंड में भी बीते कुछ सालों से देखने को मिल रहे हैं मुख्यमंत्री पर मुख्यमंत्री बदलकर परफॉर्मेंस को छुपा देना बीजेपी का खेल यहां की जनता को समझ आने लगा है , उस पर भी पार्टी आलाकमान का प्रदेश में घट रही घटनाओं पर लगातार अनदेखी करना आने वाले लोक सभा इलेक्शन में अपना अलग रंग दिखा सकता है , कर्नाटक की हार के कारणों को अगर हम देखें इसमें कुछ समानता उत्तराखंड में भी साफ नजर आएंगी जो आने वाले चुनाव में अपना असर दिखा सकती है आइए जानते है कर्नाटक की हार के मुख्य कारण जिन पर मीडिया प्लेटफॉर्म पर बहस शुरू हो गई है
ये है 6 हार के कारण ……
1 कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना:
2 भ्रष्टाचार:
3 सियासी समीकरण नहीं साध सकी बीजेपी
4 ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम
5 दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा
6 सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश सकी
*उत्तराखंड के संदर्भ में बात करें तो मुख्यमंत्री की दावेदारी के लिए यहां भी मजबूत चेहरा नहीं दिखता, बीजेपी में जो मजबूत हो सकते थे वो हाशिए पर है।
*भ्रष्टाचार चरम पर दिख रहा है निर्माण कार्य, पेपर लीक, बेकड़ोर एंट्री सहित बेकाबू क्राइम जिस पर बीजेपी आलाकमान आंखों में पट्टी बांधकर बैठा हुआ है जनता आक्रोशित है गुस्सा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।
*सियासी समीकरण हमेशा की तरह कुमाऊ गढ़वाल की तरह उलझे हुए हैं
* वोटो का ध्रुवीकरण बुलडोजर के एक्शन से शुरू हो गया है जो कितना काम आएगा वो वक्त बताएगा
* कर्नाटक की तरह उत्तराखंड में भी राजनीतिज्ञ खिलाड़ी को साइड लाइन किया गया है जिसका असर दिखने लगा है
* यहां भी बैठे बिठाए माननीय मंत्रियों ने अपनी पार्टी की इमेज को बड़ा नुकसान पहुंचाया है विपक्ष को कई बड़े राजनीतिक मुद्दे दिए है,जिस पर पार्टी चुप्पी साधे हुए बैठी है और जनता इंतजार में
अब आप ही सोचिए उत्तराखंड में आगामी बीजेपी को नगर निकाय, लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में जमीन बचाने ने के लिये क्या ठोस कदम उठाने होगे? कैसे मौजूदा हालत पर कर्नाटक चुनाव परिणाम से सबक लेते हुए आगे बढ़ना है ये बीजेपी रणनीतिकारो को जमीनी स्तर पर कदम उठा कर दिखाना होगा नही तो बड़ी कठिन डगर पनघट की।